सर्वप्रथम गणेश का ही पूजन क्यों ?
भारतीय देव परंपरा में गणेश आदिदेव हैं। हिंदू धर्म में किसी भी शुभकार्य का आरंभ करने के पूर्व गणेश जी पूजा करना आवश्यक माना गया है क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता व ऋद्धि- सिद्धि का स्वामी कहा जाता है। इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व विघ्न का विनाश होता है। वे एकदंत, विकट, लंबोदर और विनायक है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप हैं। गणेश का अर्थ है- गणों का ईश। अर्थात् गणों का स्वामी। किसी पूजा, आराधना, अनुष्ठान व कार्य में गणेश जी के गण कोई बाधा न पहुंचाएं, इसलिए सर्वप्रथम गणेश पूजा करके उसकी कृपा प्राप्त की जाती है । प्रत्येक शुभकार्य के पूर्व श्रीगणेशाय नम: का उच्चारण कर उनकी स्तुति में यह मंत्र बोला जाता है –
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ: ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।
अर्थात् ‘विशाल आकार और टेढ़ी सूंड वाले करोड़ों सूर्यों के समान तेज वाले हे देव (गणेशजी)! मेरे समस्त कार्यों को सदा विघ्नरहित पूर्ण करें।‘
वेदों में भी गणेश की महत्ता व उनके विघ्नहर्ता स्वरूप की ब्रह्मरूप में स्तुति व आह्वान करते हुए कहा गया है-
गणनां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कबीना मुपश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठरांज ब्रह्ममणस्पत आ न: श्रृण्वन्न् तिभि: सीदसादनम् ।।
-ऋग्वेद 2/23/1
गणेश जन आस्थाओं में अमूर्त रूप से जीवित थे, वह आस्थाओं से मूर्तियों में ढल गए। गजमुख, एकदंत लंबोदर आदि नामों और आदिम समाजों के कुल लक्षणों से गणेश को जोड़कर जहां गुप्तों ने अपने साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया वहीं पूजकों को भी अपनी सीमा विस्तृत करने का अवसर मिला। गणेश सभी वर्गों की आस्थाओं का केंद्र बन गए। एक प्रकार से देखा जाए गणेश व्यापक समाज और समुदाय को एकता के सूत्र में पिरोने का आधार बने, वहीं सभी धर्मों की आस्था का केंद्र बिंदु भी सिद्ध हुए। उनका मंगलकारी व विघ्नहर्ता रूप सभी वर्गों को भाया। इस विराट विस्तार ने ही गणेश को न केवल संपूर्ण भारत बल्कि विदेशों तक पूज्य बना दिया और अब तो विश्व का संभव: ही ऐसा कोई कोना हो जहां गणेश न हों।
वेदों और पुराणों में सर्वत्र प्रथम पूजनीय गणपति बुद्धि, साहस और शक्ति के देवता के रूप में भी देखे जाते हैं। सिंदूर वीरों का अलंकरण माना जाता है। गणेश, हनुमान और भैरव को इसलिए सिंदूर चढ़ाया जाता है। गणपत्य संप्रदाय के एकमात्र आराध्य के रूप में देश में गणेश की उपासना सदियों से प्रचलित है।
आज भी गणपति मंत्र उत्तर से दक्षिण तक सभी मांगलिक कार्यों मे बोले जाते हैं। नगर-नगर में गणेश मंदिर हैं जिनमें सिंदूर, मोदक, दूर्वा और गन्ने चढ़ाए जाते हैं। सिंदूर शौर्य के देवता के रूप में मोदक तृप्ति और समृद्धि के देवता के रूप में तथा दूर्वा और गन्ना हाथी के शरीर वाले देवता के रूप में गणेश को प्रिय माना जाता है ।
सधन्यवाद