फिबोनैचि अनुक्रम - (Fibonacci sequence)
भारतीयों ने संख्याओं के फिबोनैचि अनुक्रम को खोजने के लिए सबसे पहले किया था।
महर्षि पिंगला (700 BC) के "चंद्र-शास्त्र"में "मात्र-मेरू" के उथलेविकर्णों की रकम संख्याओं के फिबोनैचि अनुक्रम को जन्म देती है।भरत मुनि के नाट्य-शास्त्र (100 BC), विष्णु-धर्मोत्तर पुराण (5 वीं शताब्दी) और मातंग मुनि के बृहद्द्सी में संख्याओं के फिबोनैचि अनुक्रम का ज्ञान बताया। पहली बार विरहंका (6 वीं शताब्दी) ने स्पष्टरूप से दिखाया कि किस प्रकार फाइबोनैचि अनुक्रम संख्याओं केविश्लेषण से छोटा (लघु L) या लंबा (गुरु S) मानक के साथ विघटितकिए जा सकते हैं।
Syllables Pattern Sequence of no.
1. S 1
2. SS, L 2
3. SSS, SL, LS 3
4. SSSS, SSL, SLS, LSS, LL 5
5. SSSSS, SSSL, SSLS, 8
SLSS, SLL, LSSS, LSL, LLS
6. SSSSSS, SSSSL, SSSLS, 13
SSLSS, SLSSS, LSSS, SSLL,
SLSL, SLLS, LSSL, LSLS,
LLSS, LLL
विरहांका ने सूत्र :-
"F(n) = F(n -1) + F(n -2)"
के ज्ञान को प्रदर्शित किया और साबित कर दिया कि लम्बाई के एकपैटर्न को लंबाई (S) की लंबाई के एक पैटर्न के लिए लघु (S) जोड़करबनाया जा सकता है (n -1) या लम्बा (L) मानक लंबाई (n -2) के पैटर्नके अनुसार उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि लंबाई n के पैटर्न की संख्या दोपिछले पैटर्नों की संख्या है लम्बाई के इन संख्याओं के पैटर्न संख्याओंका अनुक्रम है जो कि संख्याओं के फिबोनैचि अनुक्रम के रूप में जानाजाता है। गोपाला (11 वीं शताब्दी) ने जो अनुक्रम दिया था -
1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21,.........
यह अनुक्रम सिद्ध करता है कि प्रत्येक संख्या अपने ठीक पहले दोसंख्याओं के योग से प्राप्त हुई है।
और हेमचंद्र (1098 AD ) ने भी इस विषय पर बड़े पैमाने परफिबोनैची से पहले काम किया।
उपरोक्त अनुक्रम आज इटली के गणितज्ञ पीसा केलियोनार्दो (1202 AD) के अनुसार फिबोनैचि अनुक्रम के नाम सेजाना जाता है।
आधुनिक गणितज्ञ फिबोनाची अनुक्रम को निम्न रुप से व्यक्त करते हैं -
a, b, a+b, a+2b, 2a+3b, 3a+5b, 5a+8b, 8a+13b,.........
परन्तु फिबोनाची अनुक्रम का नाम "पिंगला-विरहांका अनुक्रम संख्या" के रूप में होना चाहिए।
।। मानस-गणित (Vedic- Ganit) ।।
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नोट :- उपरोक्त विषय व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है,
अपने आस-पास के पर्यावरण, ऋषि-मुनियों,
ज्ञानियों तथा मनीषियों के लिखित तथा
अलिखित श्रोत के आधार पर तैयार किया
गया है।