।। अनेक-वर्ण-समीकरण ( Multiple-Variable-Equestions) ।।
या
दो चर वाले रैखिक समीकरण ( Linear Equation of two Variable)
प्राचीन (Ancient) बीज-गणित (Algebra) में अनेक चर वाले समीकरणों (equestrians) का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। इनमें से कुछ समीकरणों को ब्रह्मगुप्त ने संक्रमण (transition) या विषम-कर्म नाम प्रदान किया गया है। यदि दो चर (variable) या अज्ञात राशि हो तथा उनके हल करने के लिए दो समीकरण का उपयोग हो तो निश्चित हल प्राप्त होता है।
—संक्रमण के नियम (Rules of Transition) :-
इस नियम के द्वारा दो चर वाली राशि के मान का संक्रमण एक चर के मान में कर दिया जाता है। इस प्रकार इसका यह नाम सार्थक है। प्राचीन बीज-गणित में इसके छोटे-छोटे उपभेदों को रखते हुए उनके अलग-अलग प्रकार के नियम बताए हैं। यहाँ इनका क्रमशः निरूपण इस प्रकार प्रस्तुत है।
—संक्रमण के प्रकार (Types of transition) :-
प्रथम :-
महावीराचार्य के विवरण (description) के अनुसार एक विशेष (special) प्रकार (type) के संक्रमण में समीकरण का यह आकार प्राप्त होता है —
c X + d Y = a
d X + c Y = b
इसे हल करने के लिए उनके द्वारा प्रस्तुत नियम यह है कि —
ज्येष्ठघ्नमहाराशेजघन्यफलताडितोनमपनीय।
फलवर्गशेषभागो ज्येष्ठार्धोsन्यो गुणस्य विपरीतम् ।।
(—गणितसार-संग्रह - 5 - 139)
अर्थात :-
बड़ी राशि (d) की बड़ी गुणित (coefficient) राशि (b) से गुणा (multiply) करने पर प्राप्त संख्या से छोटी राशि (c) की छोटी गुणित (coefficient) राशि (a) को घटाकर प्राप्त संख्या को तथा बड़ी राशि (d) की छोटी गुणित (coefficient) राशि (a) से गुणा करने पर प्राप्त संख्या से छोटी राशि (c) की बड़ी गुणित (coefficient) राशि (b) को घटाकर प्राप्त संख्या को बड़ी संख्या के वर्ग (square) (d²) से छोटी संख्या के वर्ग (square) (c²) को घटाने पर प्राप्त संख्या से भाग (divide) देने पर क्रमशः अज्ञात अभिमत (required) राशि प्राप्त होती है।
इस नियम के अनुसार (X) तथा (Y) का मान ज्ञात करने के लिए यह सूत्र प्राप्त करते हैं —
X = (db - ca) ÷ (d² - c²)
Y = (da - cb) ÷ (d² - c²)
उदाहरण (example) :-
5x + 7y = 101, { c = 5, d= 7, a= 101 }
7x + 5y = 103, { d=7, c=5, b= 103 }
इस सूत्र के प्रयोग से इसका मान सर्वथा स्पष्ट है —
X = ( 7 × 103 - 5 × 101) ÷ ( 49 - 25)
= ( 721 - 505) ÷ 24
= 216 ÷ 24
= 9
Y = (7×101 - 5×103) ÷ (49-25)
= ( 707 - 515) ÷ 24
= 192 ÷ 24
= 8
अभ्यास (Exercise) :-
(1) a X + b Y = a ; b X + a Y = b
(2) 31 X + 23 Y = 39 ; 23 X + 31 Y = 15
(3)148X + 231Y = 527 ; 231X+148Y =610
द्वितीय :-
संक्रमण के अन्य प्रकार में इस प्रकार का समीकरण प्राप्त होता है —
X + Y = a
X - Y = b
ब्रह्मगुप्त ने इसे हल करने के लिए नियम इस प्रकार बताया है —
योगोsन्तरयुतहीनो द्विहृतः संक्रमणन्तरविभक्तं वा।
(—ब्रह्मस्फुट-सिद्धांत - 18 - 36)
अर्थात :-
दो चर संख्याओं के योग (sum) तथा अन्तर (difference) से प्राप्त अचर संख्या को युत अर्थात जोड़ कर अथवा घटाकर दो से विभाजित (divide) करे। इस संक्रमण से अज्ञात राशि का मान प्राप्त होता है।
भास्कराचार्य ने इस विधि को इन शब्दों में प्रकट किया है —
योगोsन्तरेणोनयुतोsर्धितस्तौ राशि स्मृतं संक्रमणाख्यमेतत्।
(—लीलावती, संक्रमण विधि, श्लोक - 1)
अर्थात :-
योगांक (a) तथा अन्तरांक (b) को क्रमशः घटाकर तथा जोड़कर आधा (half) करने से संक्रमण नामक राशियां प्राप्त होती है।
इसके अनुसार हम संक्रमण में X तथा Y का मान प्राप्त करने के लिए यह सूत्र प्राप्त करते हैं।
X = 1/2 ( a+b)
Y = 1/2 (a - b)
उदाहरण (example) :-
X + Y = 101
X - Y = 25
उपरोक्त सूत्र का प्रयोग कर इस प्रकार हल प्राप्त किया जा सकता है —
X = (101 + 25) ÷ 2 = 126 ÷ 2 = 63
Y = ( 101 - 25) ÷ 2 = 76 ÷ 2 = 38
अभ्यास (exercise) :-
(1) x + y = 407 ; x - y = 67
(2) x + y = 351 ; x - y = 51
तृतीय :-
गणित सार-संग्रह में इसके एक अन्य प्रकार का उल्लेख किया गया है। इसके समीकरण का यह आकार होता है —
X² + Y² = a
XY = b
इसके लिए प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक महावीराचार्य का नियम यह है कि अज्ञात राशि के वर्ग योगांक (a) में द्विगुणित अवर्ग योगांक (b) जोड़े या उसमें से इसे घटावें। इन दोनों का वर्गमूल (square root) प्राप्त करें। पुनः इन वर्गमूलित राशियों को जोड़कर या घटाकर दो से भाग देने पर अज्ञात राशि का मान प्राप्त होता है।
इसके अनुसार ऐसे समीकरणों के लिए सूत्र प्राप्त होता है —
X = ½ { ( a + 2b) ½ + ( a - 2b) ½}
Y = ½ { ( a + 2b) ½ + ( a - 2b) ½}
उदाहरण (example) :-
X² + Y² = 1282
XY = 609
X = ½ { ( 1282 + 2× 609) ½ + (1282 - 2×609) ½}
= ½ { (1282 + 1218) ½ + (1282- 1218) ½}
= ½ { (2500)½ + (64)½}
= ½ ( 50 + 8)
= ½ × 58
= 29
Y = ½ × (50 - 8)
= ½ × 42
= 21
चतुर्थ :-
विषम-कर्म :- इसके अन्तर्गत प्रायः दो चर वाले ऐसे समीकरणों का वर्णन है, जिन्हें सामान्य विधि से या प्रतिस्थापन विधि (Elimination method) से एक चर में बदल कर उसके मान को प्राप्त किया जा सकता है अथवा इन्हें द्विघात-समीकरण (Quadratic Education) के आकार में परिवर्तित करके सूत्र द्वारा उसका मान जाना जा सकता है।
इसके एक प्रकार के अन्तर्गत अज्ञात वर्ग संख्या तथा अवर्ग संख्या के व्यकलन के आधार पर इस प्रकार के समीकरण बनते हैं —
X² - Y² = a
X - Y = b
ब्रह्मगुप्त ने इसे हल करने का नियम इस प्रकार बताया है —
वर्गान्तरमन्तरयुतहीनं द्विहृतं विषम-कर्म ।
(— ब्रह्मस्फूट-सिद्धांत - 18- 36)
अर्थात :-
अज्ञात राशि के वर्ग के अन्तर (a) को (अवर्ग राशि के अन्तर (b) से भाग देवे तथा भागफल को) उस अज्ञात राशि के अन्तर (b) जोड़े या घटावें। पश्चात् 2 से भाग देवे। इसका भागफल (Quotient)ही अज्ञात राशि है। इसे विषम-कर्म कहते हैं।
इस नियम में ब्रह्मगुप्त से भी ज्यादा स्पष्ट उल्लेख भास्कराचार्य ने बिना विषम-कर्म का नाम लेते हुए किया है —
वर्गान्तरं राशिवियोगभक्तं योगस्ततः प्रोक्तवदेव राशि।
(—लीलावती, संक्रमण-सूत्र - 1)
अर्थात :-
वर्गान्तर (a) को अज्ञात राश्यांतर (b) से भाग देने पर दोनों राशियों का योग ज्ञात होता है। उसके पश्चात पूर्वोक्त संक्रमण विधि से अज्ञात राशि का प्रतिज्ञान होता है।
इन दोनों संक्रियाओं को मिलाने से हमें यह सूत्र प्राप्त होता है —
X = ½ ( a/b + b),
Y = ½ ( a/b - b)
अभ्यास :-
(1) X² - Y² = 400 ; X - Y = 8
(2) X² - Y² = 800 ; X - Y = 16
पंचम :-
विषम-कर्म के अन्य प्रकार के अन्तर्गत एक समीकरण में अज्ञात वर्ग राशियों का तथा दूसरे में अवर्ग राशियों का योग प्रस्तुत किया जाता है ऐसे प्रश्नों में इस प्रकार समीकरण निकाय बनता है। —
X² + Y² = a
X + Y = b
इसके लिए ब्रह्मगुप्त के द्वारा प्रस्तुत नियम इस प्रकार है —
कृति-संयोगाद् द्विगुणद्युतिवर्गं प्रोह्य शेषमूलं यत् ।
तेन युतोनो योगो दलितः शेषे पृथगभीष्टे ।।
(—ब्रह्मस्फूट-सिद्धांत)
अर्थात :-
द्विगुणित वर्ग योगांक (a) से अवर्ग योगांक (b) के वर्ग को घटाकर प्राप्त संख्या के वर्गमूल को अवर्ग योगांक (b) से जोड़े या घटाए। प्राप्त राशि को 2 से भाग देने पर अभीष्ट राशियाँ प्राप्त होती है।
इस नियम के अनुसार यह सूत्र प्राप्त होता है —
X = ½ { b + (2a - b²) ½}
Y = ½ { b - ( 2a - b²) ½}
अभ्यास :-
(1) X² + Y² = 1282 ; X + Y = 50
दो चर वाले समीकरण में भास्कराचार्य के नियम अधिक स्पष्ट है —
आद्यं वर्णं शोधयेदन्यपक्षादन्यान् रूपण्यन्तश्चद्यभक्ते ।
पदेsन्यस्मिन्नाद्यवर्णोन्मितिः स्यात् वर्णस्यैकस्योन्मितीनां बहुत्वे ।।
समीकृतच्छेदगमे तु ताभ्यास्तदन्यवर्णोन्मितयः प्रसाध्याः।
अन्त्योन्मितौ कुट्टविधेर्गुणाप्ती ते भाज्यतद्भाजकवर्णमाने ।।
(—भास्करीय बीज-गणित, अनेक-वर्ण-समीकरण, श्लोक - 1 - 2)
अर्थात :-
इसके लिए समीकरण में 'आदिम वर्ण' अर्थात पहली चर राशि का इस प्रकार शोधन करें कि एक तरफ अाद्य वर्ण तथा दूसरी ओर रूप अर्थात व्यक्त या अचर राशि तथा आद्य वर्ण से संबंधित दूसरी चर राशि रह जावे।
वर्ण या चर राशि के (दो समीकरण में) दो उन्मिति या मान प्राप्त होने पर तो समीकरण की सामान्य संक्रियाओं को करने पर अन्य पक्ष में आद्य वर्ण या पहली चर राशि का मान तथा (प्रतिस्थापन विधि से) अन्य वर्ण या दूसरी चर राशि का मान प्राप्त होगा।
अभ्यास :-
(1) X - 2Y = - 300 ; 6X - Y = 70
(2) X + Y = 7 ; 5X + 12Y = 7
(3) X + Y = 3 ; 2X + 5Y = 12
(4) 2x + 4y = 10 ; 2x - 2y = 2
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।। देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा।।