।। प्राचीन भारतीय गणित का परिचय (Introduction of Ancient Indian Mathematics)।।
इहलौकिक एवं पारलौकिक ज्ञान के आदि एवं अनंत श्रोत वेद है, "वेद" का भावार्थ है — अनंत ज्ञान-विज्ञान का अक्षय भण्डार। विश्व में गणित शास्त्र का उद्भव तथा विकास उतना ही प्राचीन है जितना मानव सभ्यता का इतिहास है। दुनिया के पुस्तकालयों के प्राचीनतम ग्रंथ तथा वेद संहिताओं से गणित तथा ज्योतिष को अलग-अलग शास्त्रों के रुप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी
प्रज्ञानाय नक्षत्रदर्शम्
(~यजुर्वेद - 30 - 10)
यजुर्वेद में खगोलशास्त्र (ज्योतिष) के विद्वान के लिए "नक्षत्रदर्श" का प्रयोग किया है तथा सलाह यह दी है कि उत्तम प्रतिभा प्राप्त करने के लिए उसके पास जाना चाहिए।
यादसे शाबल्यां ग्रामण्यं गणकम्
(~यजुर्वेद - 30 - 20)
वेद में शास्त्र के रुप में गणित शब्द का नामतः उल्लेख तो नहीं किया गया है पर यह कहा है कि जल के विविध रूपों का लेखा-जोखा रखने के लिए "गणक" की सहायता ली जानी चाहिए।
शास्त्र के रुप में 'गणित' का प्राचीनतम प्रयोग 'लगध ऋषि' द्वारा प्रोक्त 'वेदांग-ज्योतिष' नामक ग्रंथ के एक श्लोक में माना जाता है —
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनि वर्तते ।।
(~वेदांग ज्योतिष)
अर्थात् —
जिस प्रकार मोर को शिखा सबसे उपर होता है, नाग के मणि भी सबसे उपर होते हैं साथ में दोनों ही बहुमूल्य होते हैं। इसी तरह सभी वेद-शास्त्रों में गणित को सर्वोच्च तथा बहुमूल्य कहा गया है।
परन्तु इससे भी पूर्व छन्दयोग्य उपनिषद् में सनतकुमार के पुछने पर देवऋषि नारद ने जो 18 अधीत विद्याओं की सूची प्रस्तुत की है —
स होवाच —
ऋग्वेदं भगवोsध्येमि यजुर्वेदं सामवेदमाथर्वणं चतुर्थमितिहासपुराणं पंचम वेदानं वेदं पित्र्यं "राशिं" दैवं निधि वाकोवाक्यमेकायनं देवविद्यां ब्रह्मविद्यां भूतविद्यां "क्षत्रविद्यां" नक्षत्रविद्यां सर्पदेवजनविद्यामेतद् भगवोsध्येमि ।
(~छन्दयोग्य उपनिषद् - 7. 1. 2)
इसके शंकरभाष्य में 'राशिम्' का अर्थ 'राशि गणितम्' किया है,
उसमें ज्योतिष के लिए नक्षत्र विद्या तथा गणित के लिए राशि विद्या ' नाम प्रदान किया है।
अतः हम कह सकते हैं कि "गणित" समस्त ज्ञान-विज्ञान का मेरुदंड है। ( Ganit is the back bone of the all sciences.)
प्राचीन भारतीय गणित को पांच कालखण्डों में विभाजित किया जा सकता है —
(1) वैदिक काल - 5000 BC से 800 BC तक
चारों वेद, शुल्बसूत्र, लगध मुनि इत्यादि
(2) पूर्व मध्यकाल 800 BC से 400 AD तक
पाणिनी, पिंगला, कौटिल्य, सूर्य सिद्धांत
(3) मध्यकाल अथवा स्वर्णयुग 400 AD से 1200 AD तक
आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कराचार्य प्रथम, ब्रह्मगुप्त, श्रीधराचार्य, महावीराचार्य, मंजुलाचार्य, आर्यभट्ट द्वितीय, भास्कराचार्य द्वितीय इत्यादि
(4) उत्तर मध्यकाल 1200 AD से 1800 AD तक
नारायणा पंडित, परमेश्वरा, नीलकण्ठं इत्यादि
(5) वर्तमान - 1800 AD से आज तक
श्रीनिवासन रामानुजन, स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ इत्यादि
।। मानस-गणित (Vedic- Ganit) ।।
(Person after Perfection becomes Personality)
Website :- www.manasganit.com
Facebook page - मानस-गणित
Facebook :- anilkumar3012@yahoo.com
Twitter :- akt1974.at@gmail.com ( Anil Kumar Thakur )
mg.vm3012@gmail.com (MANASGANIT)
Google + :- akt1974.at@gmail.com
Blog :- ManasGanit.blogspot.co.in
Mail at :- mg.vm3012@gmail.com,
manasgvm3012@gmail.com
नोट :- उपरोक्त विषय व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है,
अपने आस-पास के पर्यावरण, ऋषि-मुनियों,
ज्ञानियों तथा मनीषियों के लिखित तथा
अलिखित श्रोत के आधार पर तैयार किया
गया है।