।। ऋग्वेद — Numerical words ।।
सूक्त — 164
सप्त युञ्जन्ति रथमेकचक्रमेको अश्वो वहति सप्तनामा ।
त्रिनाभि चक्रमजरमनंर्व यत्रेमा विश्र्वा भुवनाधि तस्थुः ।। 2।।
पदार्थ :-
(यत्र) जहाँ (एकचक्रम्) एक सब कलाओं के घुमने के लिए जिस में चक्कर है उस (रथम्) विमान आदि यान को (सप्तानामा) सप्तनामों वाला (एकः) एक (अश्वः) शीघ्रगामी वायु व अग्नि (वहति) पहुँचता है वा जहाँ (सप्त) सात कलों के घर (युञ्जन्ति) युक्त होते हैं वा जहां (इमा) ये (विश्वा) समस्त (भुवना) लोकलोकान्तर (अधि, तस्थुः) अधिष्ठित होते हैं वहाँ (अनर्वम्) प्राकृत प्रसिद्ध घोड़ों से रहित (अजरम्) और जीर्णता से रहित (त्रिनाभि) तीन जिस में बन्धन उस (चक्रम्) एक चक्कर को शिल्पी जन स्थापन करें।। 2।।
तिस्त्रो मातृृृ ृ स्त्रीन्पितृ ृ न्बिभ्रदेक ऊर्ध्वस्तस्थौ नेमवग्लापयन्ति ।
मन्त्रयन्ते दिवो अमुष्य पृष्ठे विश्वविदं वाचमविश्वमिन्वाम् ।। 10।।
पदार्थ :-
जो (तिम्र) तीन (मातृ ृः) उत्तम, मध्यम्, अधम, भुमियों तथा (त्रीन) बिजुली और सूर्यरूप तीन (पितृ ृन) पालक अग्नियों को (ईम्) सब ओर से (विभ्रत) धारण करता हुआ (ऊर्ध्वः) ऊपर ऊँचा (एकः) एक सूत्रात्मा वायु (तस्थौ) स्थिर होता है जो विद्वान् जन उसको (अव, ग्तापयन्ति) कहते सुनते अर्थात उस के विषय में वार्तालाप करते हैं तथा (अविश्वमिन्वाम्) जो सब से न सेवन किई गई (विश्वमिदम्) सब लोग उस को प्राप्त होते उस (वाचम्) वाणी को (मन्त्रयन्ते) सब ओर से विचारपूर्वक गुप्त कहते हैं वे (अमुष्य) उस दूरस्थ (दिवः) प्रकाशमान सूर्य के (पृष्ठे) परभाग में विराजमान होते हैं वे (न) नहीं दुख को प्राप्त होते हैं।। 10।।