।। गति का नियम।।
आधुनिक विज्ञान के माध्यम से हम बच्चों को आदर्श नागरिक बनाने की कोशिश करते हैं परन्तु जब वे बड़े होते हैं तो उन्हें पता चलता है कि उसने जो विद्यालय, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में अपने विभिन्न शिक्षकों से जो ज्ञान प्राप्त किया है वह झूठा तथा अधूरा सत्य है तो आप अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि एक गुरु का कैसा स्वरूप उसके मन-मस्तिष्क में बनता है।
आप सभी ने बचपन से लेकर बुढ़ापे तक यही पढा होगा कि "गति के तीनों नियम" का खोज सर आईजक न्यूटन किया है तथा आज भी हमारे बच्चे यही पढ़ रहे हैं। न्यूटन का कार्यकाल 1642 ई. से 1727 ई. तक रहा है ये तो सभी जानते हैं
अब हम न्यूटन के जन्म से 2000 वर्ष पहले भारत के महान महाऋषि "कणाद" ( 600 ई. पू.) ने अपने वैशेषिक दर्शन में कर्म शब्द का अर्थ Motion से लिया है।
आपके अनुसार गति के पाँच प्रकार हैं ;
(I) उत्क्षेपण (Upward motion)
(II) अवक्षेपण (Downward motion)
(III) आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress)
(IV) प्रसारण (Shearing motion)
(V) गमन General type of motion)
अब हम आपके द्वारा दिए गए "गति के नियम" को देखते हैं।
प्रथम नियम :- वेगः निमित्तविशेषात् कर्मणो जायते ।
(The change of motion is due to impressed force.)
द्वितीय नियम :- वेगः निमित्तापेक्षात् कर्मणो जायते नियत्दिक् क्रिया प्रबन्ध हेतुः।
(The change of motion is proportional to the motive force impressed and is made in the direction of the right line in which the force is impressed.)
तृतीय नियम :- वेगः संयोगविशेषाविरोधी।
(To every action there is always an equal and opposite reaction.)
संस्कृत भाषा में गति का नियम महाऋषि कणाद के द्वारा तथा अंग्रेज़ी में सर आईजक न्यूटन के द्वारा।
=> आगे आप स्वयं विचार किजिए....
सधन्यवाद
ठाकुर जी।
।। देश को बदलना है, तो शिक्षा को बदलना होगा।।