।। मठाधीश।।
आज हम शिक्षा के क्षेत्र में धर्मनिरपेक्षता तथा पंथनिरपेक्षता को बढ़ावा देने वाले विचार का विश्लेषण करने की कोशिश करें।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं परन्तु विषय ही इतना गम्भीर है कि बात करना आवश्यक हो गया... 1965 से 1975 के बीच हिन्दी भाषा की प्रसिद्ध लेखिका सुधा अरोड़ा द्वारा रचित सावित्री बाई तथा ज्योतिबा फूले के जीवन पर आधारित एक रचना जो कि हमारे देश में ग्यारहवीं कक्षा में NCERT द्वारा प्रदत्त हिन्दी पाठ्यपुस्तक "अंतराल " के पृष्ठ संख्या 61 पर जो मठाधीश का अर्थ बच्चों को पढने तथा समझने के लिए लिखा गया है वह कतई शिक्षा के उद्देश्य को पूरा नहीं करता।
आइए हम मठाधीश शब्द के अर्थ का विश्लेषण करते हैं - जहां मठाधीश का क्या अर्थ होना चाहिए मठ का मालिक, मठ का संचालन कर्ता, मठ में सबसे उच्च पदाधिकारी इत्यादि... मठाधीश के अासपास का शब्द पर ध्यान दें जैसे द्वारकाधीश - द्वारका के राजा, कौशलाधीश - कौशल के राजा, इत्यादि के आधार पर पर भी ज्यादा से ज्यादा मठाधीश का अर्थ मठ के राजा से ज्यादा कुछ नहीं होना चाहिए..... परन्तु हिन्दी की पाठ्यपुस्तक में मठाधीश का अर्थ है " जो धर्म तथा वर्ग के नाम पर समूह बनाते हैं और अपना निर्णय दुसरों पर थोपते हैं" मठाधीश का यह अर्थ किसी भी संवैधानिक नहीं कहा जा सकता जो संविधान के मूल भावना "धर्मनिरपेक्षता तथा पंथनिरपेक्षता" को कलंकित करती है।
मेरा "राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) " से अनुरोध है पाठ्यपुस्तकों में शामिल सामग्री पर पुनः विचार करें...
जो कि शिक्षा के उद्देश्य तथा छात्रों के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य को पूरा करता हो वैसी सामग्री पुस्तकों में डालने का प्रयास किया जाना चाहिए....
सधन्यवाद
अनिल ठाकुर।