।। शांति-शांति-शांति।।
प्राचीन काल से ही मानव ने प्रकृति के साथ संधर्ष कर अपने अनुरूप बनाया परन्तु यह संघर्ष कब खुद से हो गया पता नहीं, मानव का यही संघर्ष कब मानवता का दुश्मन बन गया जो हमेशा स्वयं का ही विनाश किया है। सिन्धु घाटी की सभ्यता, माया सभ्यता, इंका सभ्यता इत्यादि न जाने और कितनी सभ्यताओं ने स्वयं का विनाश देखा है, हर विनाश के बाद पुनः अगले विनाश की तैयारी, पूरी मानव सभ्यता का इतिहास सिर्फ़ युद्धों, संघर्षों तथा लड़ाइयों का ही इतिहास है। युद्ध के अलावा कुछ होता ही नहीं। इसीलिए कहा है कि, "शान्ति काल अगले युद्ध की तैयारी मात्र है"। प्राचीन काल में रामायण तथा महाभारत के साथ साथ मध्य कालीन यवनो से लेकर मुग़ल और ब्रिटिश तक भारत ने लगातार हमलो का सामना किया है,हर काल में हमने लाखों मानव तथा बहुमूल्य मानवता की बलि दी है तथा आजादी के बाद भी हम पिछले 70 साल में 5 लड़ाइयाँ लड़ चुके है इसके अलावा आतंकवाद, नक्सलवाद तथा सीमा पर, सभी को मिला कर आंकड़ों को इकठ्ठा करें तो पायेंगे कि एक युद्ध से अधिक लोगों को हमने शांति-शांति तथा मित्रता-मित्रता खेलने में गवां दिये। तो यदि कोई यह समझता है कि अब हमें युद्ध नहीं लड़ना पड़ेगा तो यह उनकी खाम खयाली है। युद्ध टालने का सबसे बेहतर तरीका है कि, कोई राष्ट्र खुद को इतना मजबूत बना ले कि उसे कभी हमले का सामना नहीं करना पड़े। इन्सान ही ऐसा जीव है जो ईश्वर को भी झुकने पर मजबूर कर देता है...
खुदी को कर बुलन्द इतना,
खुदा बन्दे से ये पुछे, बता तेरी रजा क्या है।
कभी कभी युद्ध ना करने या युद्ध टालने की कीमत युद्ध करने से भी ज्यादा चुकानी होती है। उदाहरण के लिए कारगिल युद्ध के बाद से ही भारत युद्ध टाल रहा है और इसकी भारी कीमत चुका रहा है।
सधन्यवाद।