।। भारतीय गणितज्ञ-नारायण पंडित (01) ।।
केरला के महान गणितज्ञ जिनका कार्यकाल 1325 ई. से 1400 ई. के बीच रहा। इनके पिता का नाम नरसिम्हा था। आर्यभट्ट तथा भास्कराचार्य - ।। से प्रभावित हो कर गणित के विभिन्न क्षेत्रों में अनुपम योगदान दिया, इन्होंने अंकगणित, बीज-गणित, ज्यामिती, जादूई-वर्ग इत्यादि अनेक विषयों पर कार्य किया है। सन् 1356 ई. में इन्होंने गणित कौमुदी की रचना की साथ ही भास्कराचार्य द्वितीय द्वारा रचित लीलावती के उपर टिप्पणी 'कर्मप्रदीपिका' की रचना की।
विभिन्न क्षेत्रों में आपके द्वारा किये गये कुछ कार्य —
~ अंकगणित —
इसके अन्तर्गत आपने वर्ग करने की नई विधि की रचना की थी
(i) P² = (p + q)² = p² + q² + 2pq
(24)² = (20 + 4)²
= 20² + 4² + 2×20 × 4
= 400 + 16 + 160
= 576
(ii) N² = (N - a) (N+ a) + a²
(24)² = ( 24 - 4) ( 24+ 4) + 4²
= 20 × 28 + 16
= 576
इसके अलावा गुणन के प्रक्रिया को कपाट-संधि विधि से बताया।
उन्होंने 10 के वर्ग मूल के लिए 3 जोड़ी हल दिये जहाँ x तथा y है (6, 19), (228, 721) तथा (8658, 27379) जो कि 10 के वर्ग मूल का कई अंकों तथा शुद्ध मान देता है —
(1) 10 का वर्ग मूल = 19 / 6 = 3.16667
(2) 10 का वर्ग मूल = 721 / 228 = 3.1622807
(3) 10 का वर्ग मूल = 27379 / 8658 = 3.162277662 (दशमलव के आठ अंकों तक)
~ बीज-गणित —
- आर्यभट्ट की कुट्टक प्रक्रिया पर विस्तार से कार्य किया।
- भास्कराचार्य - ii के चक्रवाल पद्धति Nx² + 1 = y² पर भी विस्तृत चर्चा की
उन्होंने इसके कई हल दिये —
~ 97x² + 1 = y² : इसका हल x = 6377352 तथा y = 63809633
~ 103x² + 1 = y² : इसका हल x = 2249 तथा y = 227528
- नारायण पंडित की गुणनखण्डन प्रक्रिया जोकि आजकल हम फरमेट गुणनखण्डन विधि के नाम से जानते हैं।
~ ज्यामिती —
इस विषय के अन्तर्गत आपने कई विषयों पर कार्य किया है।
चक्रीय चतुर्भुज :-
(1) यदि किसी चक्रीय चतुर्भुज की भुजाएं दी गई हो तो उसके केवल तीन विकर्ण संभव है।
(2) किसी चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल उसके तीनों विकर्णों के योग को त्रिज्या के चार गुणा से विभाजित कर प्राप्त किया जा सकता है या तीनों विकर्णों को परिवृत के व्यास के दो गुणा से विभाजित कर प्रात किया जा सकता है।
(3) उन्होंने चक्रीय चतुर्भुज के परिवृत त्रिज्या प्रात करने के लिए भी सूत्र दिए हैं।
त्रिभुज का क्षेत्रफल :-
त्रिभुज का क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिए उन्होंने यह सूत्र दिया —
त्रिभुज के भुजाओं के योग को त्रिभुज के परिवृत त्रिज्या के चार गुणा से विभाजित करने से प्राप्त होता है।
अंकपाश, मत्स्य मेरु, इत्यादि विषयों पर कार्य किया है।
~ जादूई-वर्ग —
इस विषय पर आपने
पद्मा हर छोटे वर्ग के चार पत्रों में 8 संख्या इस प्रकार रखें कि कुल योग 132 हो ,
वाजरा में 8 संख्या को एक ही काॅलम में प्रत्येक वर्ग ऊर्ध विकर्ण में इस प्रकार रखें कि योग 132 हो,
शादसरा (षट्भुज) हर समूह में 8 संख्या इस प्रकार है कि कुल योग 294 है।
इस तरह की अनेक जादूई-वर्ग का निर्माण बहुत ही सुन्दरता से आपने "भद्र-गणित" में किया है।
आपके द्वारा तैयार किया गया एल्गोरिदम का प्रयोग गणित के साथ साथ कम्प्यूटर के प्रोग्रामिंग लैंग्वेज C, C++ में किया जाता है।
।। मानस-गणित (Vedic- Ganit) ।।
(Person after Perfection becomes Personality)
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नोट :- उपरोक्त विषय व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है,
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ज्ञानियों तथा मनीषियों के लिखित तथा
अलिखित श्रोत के आधार पर तैयार किया
गया है।