।। रसायन शास्त्र।।
रसायन शास्त्र का सम्बन्ध धातु विज्ञान तथा चिकित्सा विज्ञान से भी है। वर्तमान काल में प्रसिद्ध वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय ने "हिन्दू केमेस्ट्री" ग्रंथ लिख कर कुछ समय से लुप्त शास्त्र को फिर लोगों के सामने लाया। रसायन शास्त्र एक प्रयोगात्मक विज्ञान है। खनिजों, पौधों, कृषिधान्य आदि के द्वारा विविध वस्तुओं का उत्पादन, विभिन्न धातुओं का निर्माण व परस्पर परिवर्तन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक औषधियों का निर्माण इसके द्वारा होता है।
प्राचीन काल के रसायनज्ञ तथा उनकी कृतियाँ :-
नागार्जुन - रसरत्नाकर, कक्षपुटतंत्र, आरोग्य मंजरी, योग सार, योगाष्टक
वांग्भट्ट - रसरत्न समुच्चय
गोविन्दाचार्य - रसार्णव
यशोधर - रस प्रकाश सुधाकर
रामचंद्र - रसेन्द्र चिंतामणि
सोमदेव - रसेन्द्र चूड़ामणि
मुख्य रस (Chemical) :-
रसरत्न समुच्चय ग्रंथ में निम्न रसायनों का उल्लेख किया गया है।
महारस, उपरस, सामान्यरस, रत्न, धातु, विष, क्षार, अम्ल, लवण, लौहभस्म
नागार्जुन - रसरत्नाकर, कक्षपुटतंत्र, आरोग्य मंजरी, योग सार, योगाष्टक
वांग्भट्ट - रसरत्न समुच्चय
गोविन्दाचार्य - रसार्णव
यशोधर - रस प्रकाश सुधाकर
रामचंद्र - रसेन्द्र चिंतामणि
सोमदेव - रसेन्द्र चूड़ामणि
मुख्य रस (Chemical) :-
रसरत्न समुच्चय ग्रंथ में निम्न रसायनों का उल्लेख किया गया है।
महारस, उपरस, सामान्यरस, रत्न, धातु, विष, क्षार, अम्ल, लवण, लौहभस्म
महारस (Main Chemical) :-
अभ्रं, वैक्रांत, भाषिक, विमला, शिलाजतु, सास्यक, चपला, रसक
उपरस :-
गंधक, गैरिक, काशिस, सुवरी, लालक, मनः शिला, अंजन, कंकुष्ठ
सामान्य रस :-
कोयिला, गौरीपाषाण, नवसार, वराटक, अग्निजार, लाजवर्त, गिरि सिंदूर, हिंगुल, मुर्दाड श्रृंगकम्
अभ्रं, वैक्रांत, भाषिक, विमला, शिलाजतु, सास्यक, चपला, रसक
उपरस :-
गंधक, गैरिक, काशिस, सुवरी, लालक, मनः शिला, अंजन, कंकुष्ठ
सामान्य रस :-
कोयिला, गौरीपाषाण, नवसार, वराटक, अग्निजार, लाजवर्त, गिरि सिंदूर, हिंगुल, मुर्दाड श्रृंगकम्
प्रयोग शाला :-
रसरत्न समुच्चय के अध्याय - 7 में रसशाला याने प्रयोगशाला का विस्तार से वर्णन है। इसमें 32 से अधिक यंत्रों का उपयोग किया जाता था जिनमें प्रमुख हैं —
(1) दोलयंत्र, (2) स्वदनी यंत्र, (3) पाटन यंत्र, (4) अधस्पंदन यंत्र, (5) ढ़ेकी यंत्र, (6) बालूका यंत्र, (7) तिर्यक पाटन यंत्र, (8) विद्यधर यंत्र, (9) धूप यंत्र, (10) कोष्टी यंत्र, (11) कच्छप यंत्र, (12) डमरु यंत्र
रसरत्न समुच्चय के अध्याय - 7 में रसशाला याने प्रयोगशाला का विस्तार से वर्णन है। इसमें 32 से अधिक यंत्रों का उपयोग किया जाता था जिनमें प्रमुख हैं —
(1) दोलयंत्र, (2) स्वदनी यंत्र, (3) पाटन यंत्र, (4) अधस्पंदन यंत्र, (5) ढ़ेकी यंत्र, (6) बालूका यंत्र, (7) तिर्यक पाटन यंत्र, (8) विद्यधर यंत्र, (9) धूप यंत्र, (10) कोष्टी यंत्र, (11) कच्छप यंत्र, (12) डमरु यंत्र
धातुओं का मारना :-
विविध धातुओं को उपयोग करने हेतु उसे मारने की विधि का वर्णन किया गया है। प्रयोगशाला में धातुओं को मारना एक परिचित विधि थी। गंधक का सभी धातुओं को मारने में उपयोग होता था।
रसायन शास्त्री गोविन्दाचार्य कहते हैं कि —
नास्ति तल्लोहमातंङ्गो यन्न गंधककेशरी।
निहन्याद्वन्धमात्रेण यद्वा माक्षिककेशरी।।
रसार्णव - 7 - 138 - 142
अर्थात् -
ग्रंथ में गंधक की तुलना सिंह से की गई है तथा धातुओं की हाथी से और कहा गया है कि जैसे सिंह हाथी को मारता है उसी प्रकार गंधक सब धातुओं को मारता है।
विविध धातुओं को उपयोग करने हेतु उसे मारने की विधि का वर्णन किया गया है। प्रयोगशाला में धातुओं को मारना एक परिचित विधि थी। गंधक का सभी धातुओं को मारने में उपयोग होता था।
रसायन शास्त्री गोविन्दाचार्य कहते हैं कि —
नास्ति तल्लोहमातंङ्गो यन्न गंधककेशरी।
निहन्याद्वन्धमात्रेण यद्वा माक्षिककेशरी।।
रसार्णव - 7 - 138 - 142
अर्थात् -
ग्रंथ में गंधक की तुलना सिंह से की गई है तथा धातुओं की हाथी से और कहा गया है कि जैसे सिंह हाथी को मारता है उसी प्रकार गंधक सब धातुओं को मारता है।
मिश्र धातु (पीतल):-
नागार्जुन कहते हैं कि —
क्रमेण कृत्वाम्बुधरेण रंजितः ।
करोति शुल्वं त्रिपुटेन काञ्चनम्।।
रसरत्नाकर - 3
अर्थात् —
जस्ता (Zinc) शुल्व (ताम्बे) से तीन बार मिलाकर गर्म किया जाय तो पीतल (Brass) मिश्र धातु बनती है।
नागार्जुन कहते हैं कि —
क्रमेण कृत्वाम्बुधरेण रंजितः ।
करोति शुल्वं त्रिपुटेन काञ्चनम्।।
रसरत्नाकर - 3
अर्थात् —
जस्ता (Zinc) शुल्व (ताम्बे) से तीन बार मिलाकर गर्म किया जाय तो पीतल (Brass) मिश्र धातु बनती है।
सक्रियता श्रेणी :-
महाऋषि गोविन्दाचार्य ने धातुओं के जंग-रोधन या क्षरण रोधों की क्षमता का क्रम से वर्णन किया है —
महाऋषि गोविन्दाचार्य ने धातुओं के जंग-रोधन या क्षरण रोधों की क्षमता का क्रम से वर्णन किया है —
सुवर्णं रजतं ताम्रं तीक्ष्णवंग भुजङ्गमाः ।
लोहकं षड्विधं तच्च यथापूर्वं तदक्षयम् ।।
—रसार्णव - ७ - ८९ - ९०
अर्थात :-
धातुओं के अक्षय रहने का क्रम निम्न प्रकार से है....
सुवर्ण (सोना).... चांदी.... ताम्र (copper).... वंग... सीसा... तथा लोहा। इसमें सोना सबसे अधिक अक्षय है।
लोहकं षड्विधं तच्च यथापूर्वं तदक्षयम् ।।
—रसार्णव - ७ - ८९ - ९०
अर्थात :-
धातुओं के अक्षय रहने का क्रम निम्न प्रकार से है....
सुवर्ण (सोना).... चांदी.... ताम्र (copper).... वंग... सीसा... तथा लोहा। इसमें सोना सबसे अधिक अक्षय है।
लवण :-
ताम्रदाह जलैर्योगे जायते तुत्यकं शुभम् ।
अर्थात् —
तांबे के साथ तेजाब का मिश्रण होता है तो काॅपर सल्फेट प्राप्त होता है।
Ca + H2 SO4 —> Ca SO4
ताम्रदाह जलैर्योगे जायते तुत्यकं शुभम् ।
अर्थात् —
तांबे के साथ तेजाब का मिश्रण होता है तो काॅपर सल्फेट प्राप्त होता है।
Ca + H2 SO4 —> Ca SO4
बज्रसंधात (Adamantine Compound):-
वराहमिहिर अपनी वृहत्संहिता में कहते हैं कि —
अष्टौ सीसकभागाः कांसस्य द्वौ तु रीतिकाभागः।
मया कथितो योगोऽयं विज्ञेयो वज्रसङ्घातः ।।
—वृहत्संहिता
अर्थात् —
एक यौगिक जिसमें आठ भाग शीशा, दो भाग कांसा और एक भाग लोहा हो उसे मय द्वारा बताई विधि का प्रयोग करने पर वह वज्रसङ्घात बन जायेगा।
वराहमिहिर अपनी वृहत्संहिता में कहते हैं कि —
अष्टौ सीसकभागाः कांसस्य द्वौ तु रीतिकाभागः।
मया कथितो योगोऽयं विज्ञेयो वज्रसङ्घातः ।।
—वृहत्संहिता
अर्थात् —
एक यौगिक जिसमें आठ भाग शीशा, दो भाग कांसा और एक भाग लोहा हो उसे मय द्वारा बताई विधि का प्रयोग करने पर वह वज्रसङ्घात बन जायेगा।
आशव बनाना :-
चरक के अनुसार 9 प्रकार के आशव बनाने का उल्लेख है —
(1) धान्यासव - Grain and Seeds
(2) फलासव - Fruits
(3) मूलासव - Roots
(4) सरासव - Wood
(5) पुष्पासव - Flowers
(6) पत्रासव - Leaves
(7) काण्डासव - Stems (Stacks)
(8) त्वगासव - Barks
(9) शर्करासव - Sugar
इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के गंध, इत्र, सुगंधि के सामान आदि का भी विकास हुआ था। रसायनशास्त्रीय धातु सम्बन्धी व्यापक प्रयोग के बारे में धातु विज्ञान के वर्णन के समय पूर्व में ही कहा गया है।
चरक के अनुसार 9 प्रकार के आशव बनाने का उल्लेख है —
(1) धान्यासव - Grain and Seeds
(2) फलासव - Fruits
(3) मूलासव - Roots
(4) सरासव - Wood
(5) पुष्पासव - Flowers
(6) पत्रासव - Leaves
(7) काण्डासव - Stems (Stacks)
(8) त्वगासव - Barks
(9) शर्करासव - Sugar
इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के गंध, इत्र, सुगंधि के सामान आदि का भी विकास हुआ था। रसायनशास्त्रीय धातु सम्बन्धी व्यापक प्रयोग के बारे में धातु विज्ञान के वर्णन के समय पूर्व में ही कहा गया है।
। मानस-गणित (Vedic- Ganit) ।।
(Person after Perfection becomes Personality)
Wabesite :- www.ManasGanit.com
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Blog :- ManasGanit.blogspot.co.in
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नोट :- उपरोक्त विषय व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है अपने आस-पास के पर्यावरण, ऋषि-मुनियों, ज्ञानियों तथा मनीषियों के लिखित तथा अलिखित श्रोत के आधार पर तैयार किया है।