।। वनस्पति शास्त्र।।
वैदिक काल से ही भारत वर्ष में प्रकृति के निरीक्षण, परीक्षण एवं विश्लेषण की प्रवृत्ति रही है। अतः इसी प्रक्रिया में वनस्पति जगत का विश्लेषण किया गया। प्राचीन वाङ्गमय में इसके अनेक संदर्भ ज्ञात होते हैं। अथर्ववेद में पौधों को आकृति तथा अन्य लक्षणों के आधार पर सात उप विभागों में बांटा गया है -
यथा — वृक्ष, तृण, औषधि, गुल्म, लता, अवतान, वनस्पति।
आगे चलकर महाभारत, विष्णुपुराण, मत्स्य पुराण, शुक्र नीति, बृहत्संहिता, पाराशर, चरक, सुश्रुत, उदयन आदि द्वारा वनस्पति, उसकी उत्पत्ति, उसके अंग, क्रिया उनके विभिन्न प्रकार, उपयोग आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है।
पौधे में जीवन :-
पौधे जड़ नहीं, अपितु उनमें जीवन होता है। वे चेतन जीव की तरह सर्दी - गर्मी के प्रति संवेदनशील रहते हैं, उन्हें भी हर्ष और शोक होता है, वे मूल से पानी पीते हैं, उन्हें भी रोग होता है इत्यादि।
सुखदुःखयोश्च ग्रहणाच्छिन्नस्य च विरोहणात् ।
जीवं पश्यामि वृक्षाणां चैतन्यं न विद्यते।।
अर्थात् —
वृक्ष कट जाने पर उनमें नया अंकुर उत्पन्न हो जाता है और वे सुख, दुःख को ग्रहण करते हैं। इससे मैं देखता हूँ कि वृक्षों में जीवन है। वे अचेतन नहीं है।
महर्षि चरक कहते हैं कि —
तच्येतनावद् चेतनञ्च
अर्थात् —
प्राणियों की भांति उनमें (वृक्षों में) भी चेतना होती है।
आगे कहते हैं कि —
अत्र सेंद्रियत्वेन वृक्षादीनामपि चेतनत्वम् बोद्धव्यम् ।
अर्थात् —
वृक्षों को भी इन्द्रिय है, अतः उनमें चेतना है। इसको जानना चाहिए।
प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के खोज का श्रेय डच जीव विज्ञानी Jan Ingenhousz (1730 – 1799 AD) को दिया जाता है।
सत्यता:-
हरा पौधा कार्बन डाइऑक्साइड तथा क्लोरोफिल सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में आक्सीजन तथा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करता है जोकि पौधे का भोजन है।
महर्षि पाराशर द्वारा रचित ग्रंथ "वृक्ष आयुर्वेद" के छः भाग है—
(1) बीजोत्पत्ति काण्ड, (2) वानस्पपत्य काण्ड, (3) गुल्म काण्ड, (4) वनस्पति काण्ड, (5) विरुद्ध वल्ली काण्ड तथा (6) चिकित्सा काण्ड
इस ग्रंथ के प्रथम भाग बीजोत्पत्ति काण्ड में आठ अध्याय है जिनमें बीज के वृक्ष बनने तक की गाथा आदि का वैज्ञानिक पद्धति से विवेचन किया गया है। इसके प्रथम अध्याय है।
बीजोत्पत्ति सूत्राध्याय इसमें महर्षि पाराशर कहते है—
आपोहि कललं भुत्वा यत् पिण्डस्थानुकं भवेत् ।
तदेवं व्यूहमानत्वात् बीजत्वमघि गच्छति ।।
पहले पानी जेली जैसी पदार्थ को ग्रहण कर न्यूक्लियस बनाता है और फिर वह धीरे-धीरे पृथ्वी से ऊर्जा और पोषक तत्व ग्रहण करता है। फिर उसका आदि बीज के रुप में विकास होता है और आगे चलकर कठोर बनकर वृक्ष का रूप धारण करता है। आदि बीज यानी प्रोटोप्लाज्म के बनने की प्रक्रिया है जिसकी अभिव्यक्ति बीजत्व अधिकरण में की गई है
चौथा अध्याय वृक्षांग सूत्राध्याय फिजियोलॉजी का है उसमें पत्रों के बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है तथा प्रकाश संश्लेषण यानि फोटो सिंथेसिस की क्रिया के लिए कहा है—
पत्राणि तु वातातपरञ्जकानि अभिगृहन्ति।
अर्थात—
वात (कार्बन डाइऑक्साइड), आतप (सूर्य प्रकाश) तथा रंजक (क्लोरोफिल) । अतः यह स्पष्ट है कि वात (कार्बन डाइऑक्साइड)+ आतप (सूर्य प्रकाश) +रंजक (क्लोरोफिल) के उपयोग द्वारा वृक्ष अपना भोजन स्वयं बनाते हैं
सुझाव :-
प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के खोज का श्रेय वैदिक ऋषि पाराशर को दिया जाना उचित है, यह वैज्ञानिक सत्यनिष्ठा का परिचायक होगा।
कोशिका की खोज राबर्ट हुक ने सन् 1665 ई. में की।
सत्यता:-
जीव की अत्यंत सूक्ष्म मूलभूत इकाई जिसमें जीवन के सभी गुण विदमान हो कोशिका कहलाती है।
महर्षि पाराशर द्वारा रचित अद्भुत ग्रंथ वृक्ष आयुर्वेद में कोशिका की रचना का वर्णन करते हुए कहते हैं कि—
पचे रसकोषस्तु रशस्पाशयः आधारञ्च ।
खलु वृक्षपत्रे रसकोषस्त्व परिसंख्यीयः सन्ति ।
ते कलाकेष्टितेन पाञ्च भौतिक गुण समन्वितस्य रसस्याशयञ्च।
एव रञ्जक युक्तमणवश्च।
अर्थात—
इसका अर्थ है कि यह अणु के समान माईक्रोस्कोपिक है, इसमें रस (प्रोटोप्लाज्म) है और यह कला से आवेष्टित (सेल मेम्ब्रेन) है।
कला तु सुक्ष्माच्च पचका या भूतोष्म पाचिता कलला दुपाजायते ।
अर्थात—
यानि प्रारंभिक बीज की कला और टेरेस्ट्रियल (भूमि) रस तथा टेरेस्ट्रियल एनर्जी से इस सेल का निर्माण होता है। महर्षि पाराशर सेल के अंग का वर्णन करते हैं।
सन् 1665 ई. में राबर्ट हुक ने माइक्रोस्कोप के द्वारा जो वर्णन किया उससे विस्तृत वर्णन महर्षि पाराशर हजारों वर्ष पूर्व करते हैं। वे कहते हैं, कोष की रचना निम्न प्रकार है—
(1) कलावेष्टन (Outer wall), (2) रंजकयुक्त रसश्रय (Gap with a colouring matter), (3) सूक्ष्मपत्रक (Inner wall) तथा (4) अण्वश्च (Not visible to the naked eye)
अब सेल का वर्णन बिना माईक्रोस्कोप के संभव नहीं है। इसका मतलब यह है कि वृक्ष आयुर्वेद के रचयिता को हजारों वर्ष पहले माईक्रोस्कोप का ज्ञान अवश्य रहा होगा।
सुझाव:-
कोशिका के खोज का श्रेय वैदिक ऋषि पाराशर को दिया जाना उचित है, यह वैज्ञानिक सत्यनिष्ठा का परिचायक होगा।
महर्षि पाराशर का वर्गीकरण :-
महर्षि पाराशर ने सपुष्प वनस्पतियों को विविध परिवारों में बाँटा है। जैसे शमगणीय (फलियों वाले पौधे), पिपीलिका गणीय, स्वास्तिक गणिय, त्रिपुण्डक गणीय, मल्लिका गणीय और कूर्च गणीय। आश्चर्य की बात है कि जो विभाजन महर्षि पाराशर ने किया है, आधुनिक वनस्पति विज्ञान का विभाजन भी इससे मिलता जुलता है।
उदाहरण के लिए — शमगणीय विभाजन
समी तु तुण्दमण्डला विषमाविदलास्मृता।
पञ्चमुक्तदलैश्चैव युक्तजालकरुर्णितैः।।
दशभिः केशरर्विद्यात् समि पुस्पस्य लक्षणम् ।
समी सिम्बिफला ज्ञेया पार्श्व बीजा भवेत् सा।।
वक्रं विकर्णिकं पुस्पं शुकाख्या पुष्पमेव च।
एतैश्च पुष्पभेदैस्तु भिद्यन्ते समिजातयः ।।
वृक्ष आयुर्वेद - पुष्पांगसूत्राध्याय
शमगणीय Leguminasal
पाराशर के अनुसार आधुनिक मान्यता
तुण्दमण्डल - Flowers hypogamus
विषम विदल - Unequal corolla lobes
पंच मुक्तदल - Fivetrue Petals
युक्त जालिका - Synsephalous corolla
दश प्रिकेसर - Ten Stamens
इसी प्रकार अन्य विभाजन भी है।
मूल से जल का पीना :-
वृक्षों द्वारा द्रव्य आहार लेने का ज्ञान भारतीयों को था। अतः उनका नाम पादप, जो मूल से पानी पीता है रखा गया था।
महाभारत के शांतिपर्व में वर्णन आता है कि —
वक्त्रेणोत्पलनालेन यथोर्ध्वं जलमाददेत् ।
तथा पवनसंयुक्ताः पादैः पिबति पादपः ।।
- शांतिपर्व
अर्थात् —
जैसे कमल नाल को मुख में रखकर अवचूषण करने से पानी पिया जा सकता है ठीक वैसे ही पौधे वायु की सहायता से मूलों के द्वारा पानी पीते हैं।
।। मानस-गणित (Vedic- Ganit) ।।
(Person after Perfection becomes Personality)
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नोट :- उपरोक्त विषय व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है अपने आस-पास के पर्यावरण, ऋषि-मुनियों, ज्ञानियों तथा मनीषियों के लिखित तथा अलिखित श्रोत के आधार पर तैयार किया है।