महावीराचार्य
महावीराचार्य दिगम्बर जैन शाखा के प्रमुख गणितज्ञ थे। इनका जन्म काल 9 वीं शताब्दी माना जाता है। इनका निवास स्थान कर्नाटक प्रांत में थ। राष्ट्रकूट वंश के राजा अमोघवर्ष (815-877 ई) के राज्य में महावीराचार्य रहते थे। इस काल (850 ई) में ही उन्होंने "गणित सार संग्रह" नामक ग्रंथ की रचना संस्कृत भाषा में की थी। गणित सार संग्रह में 9 अध्याय हैं तथा 1131 श्लोक हैं।
गणित-शास्त्र की प्रशंसा करते हुए महावीराचार्य कहते हैं कि
बहुभिर्विप्रलापैः किम् त्रैलोक्ये सचराचरे ।
यत्किंचिद्वस्तु तत्सर्व गणितेन बिना न हि।।
अर्थात् गणित के बारे में बहुत क्या कहना, तीनो लोकों में सचराचर (चेतन और जड़) जगत में जो भी वस्तु विद्यमान हैं वे सभी गणित के बिना संभव नहीं हैं।
महावीराचार्य का योगदान
महावीराचार्य दिगम्बर जैन शाखा के प्रमुख गणितज्ञ थे। इनका जन्म काल 9 वीं शताब्दी माना जाता है। इनका निवास स्थान कर्नाटक प्रांत में थ। राष्ट्रकूट वंश के राजा अमोघवर्ष (815-877 ई) के राज्य में महावीराचार्य रहते थे। इस काल (850 ई) में ही उन्होंने "गणित सार संग्रह" नामक ग्रंथ की रचना संस्कृत भाषा में की थी। गणित सार संग्रह में 9 अध्याय हैं तथा 1131 श्लोक हैं।
गणित-शास्त्र की प्रशंसा करते हुए महावीराचार्य कहते हैं कि
बहुभिर्विप्रलापैः किम् त्रैलोक्ये सचराचरे ।
यत्किंचिद्वस्तु तत्सर्व गणितेन बिना न हि।।
अर्थात् गणित के बारे में बहुत क्या कहना, तीनो लोकों में सचराचर (चेतन और जड़) जगत में जो भी वस्तु विद्यमान हैं वे सभी गणित के बिना संभव नहीं हैं।
महावीराचार्य का योगदान
1. लघुतम समापवर्त्य(L.C.M.) ज्ञात करने की विधि देने वाले महावीराचार्य विश्व के प्रथम गणितज्ञ थे
छेदापर्वकानां लब्धनां चाहतौ निरुद्ध स्यात्।
हरहृत निरुद्धगुणिते हारांशगुणे समो हारः।।
(गणित सार संग्रह, अध्याय - 3 श्लोक)
छेदापर्वकानां लब्धनां चाहतौ निरुद्ध स्यात्।
हरहृत निरुद्धगुणिते हारांशगुणे समो हारः।।
(गणित सार संग्रह, अध्याय - 3 श्लोक)
2. संचय (Combination) ज्ञात करने के सूत्र सर्वप्रथम महावीराचार्य ने दिया। किन्तु इसे वर्तमान में हेरिगाॅन (1634 ई.) के नाम से जाना जाता है।
एकाद्येकोत्तरतः पदमूर्ध्वधरतिः पदमूर्ध्वधरतिः क्रमोत्क्रमशः ।
स्थाप्य प्रतिलोमघ्नेन भाजितं सारम् ।।
अर्थात्
संचयो की संख्या =
[n (n-1) (n-2) (n-3)... (n-r+1)]/ [1×2×3×....×r]
जहाँ n वस्तुओं की संख्या तथा r जितनी वस्तुएं लेकर संचय बनाना है उनकी संख्या।
एकाद्येकोत्तरतः पदमूर्ध्वधरतिः पदमूर्ध्वधरतिः क्रमोत्क्रमशः ।
स्थाप्य प्रतिलोमघ्नेन भाजितं सारम् ।।
अर्थात्
संचयो की संख्या =
[n (n-1) (n-2) (n-3)... (n-r+1)]/ [1×2×3×....×r]
जहाँ n वस्तुओं की संख्या तथा r जितनी वस्तुएं लेकर संचय बनाना है उनकी संख्या।
3. बीजगणित अर्थात् अव्यक्त गणित में दो या अधिक पदों के वर्ग अथवा घन के विस्तार करने की विधियाँ भी दी है —
(a + b + c +...... m + n)² = a² + b² + c² +..... +n² +2ab + 2bc + 2cd + .... +2mn)
(a + b + c +...... m + n)³ = a³ +3a²b ( b + c +.... + n) + 3a (b + c +....... + n)² + ( b + c +.... + n)³
(a + b + c +...... m + n)² = a² + b² + c² +..... +n² +2ab + 2bc + 2cd + .... +2mn)
(a + b + c +...... m + n)³ = a³ +3a²b ( b + c +.... + n) + 3a (b + c +....... + n)² + ( b + c +.... + n)³
4. ज्यामिति के क्षेत्र में योगदान - ज्यामिति में त्रिभुज, चतुर्भुज, चाप आदि की सुस्पष्ट एवं सटीक व्याख्याएं महावीराचार्य ने की है।
5. ऐसे समकोण त्रिभुज की रचना करना जिसमें भुजाओं, क्षेत्रफल तथा परिवृत के व्यास सभी की माप पूर्ण संख्याएँ होती है।
यद्यत्क्षेत्रं जातं बीजैस्संस्थाप्यं तस्य कर्णेन ।
इष्टं कर्णं विभाजेल्लाभगुणा कोटिदोः कर्णः ।।
आधुनिक गणित के इतिहास में इस प्रकार के त्रिभुज की रचना के संबंध में नियोनार्दो फिबोमासी (1202 ई.) ने पहली बार विचार किया है।
यद्यत्क्षेत्रं जातं बीजैस्संस्थाप्यं तस्य कर्णेन ।
इष्टं कर्णं विभाजेल्लाभगुणा कोटिदोः कर्णः ।।
आधुनिक गणित के इतिहास में इस प्रकार के त्रिभुज की रचना के संबंध में नियोनार्दो फिबोमासी (1202 ई.) ने पहली बार विचार किया है।
6. संख्याओं के वर्ग और वर्गमूल के विषय में महत्वपूर्ण तथ्य दिए हैं —
धनं धनर्णयोर्वर्गों मूले स्वर्णे तयोः क्रमात्।
ऋणं स्वरुपतोऽवर्गोयतस्यस्मान्न तत्पदम्।।
(अ - 7 श्लोक - 122)
अर्थात्
किसी भी संख्या का वर्गमूल धनात्मक होता है। ऋणात्मक संख्या स्वभाविकतः किसी संख्या का वर्ग नहीं होता क्योंकि इसका वर्गमूल निकालना संभव नहीं है।
धनं धनर्णयोर्वर्गों मूले स्वर्णे तयोः क्रमात्।
ऋणं स्वरुपतोऽवर्गोयतस्यस्मान्न तत्पदम्।।
(अ - 7 श्लोक - 122)
अर्थात्
किसी भी संख्या का वर्गमूल धनात्मक होता है। ऋणात्मक संख्या स्वभाविकतः किसी संख्या का वर्ग नहीं होता क्योंकि इसका वर्गमूल निकालना संभव नहीं है।
7. सामांतर श्रेढी पर योगदान - महावीराचार्य ने सामांतर श्रेढी के योग का जो सूत्र बताया है उसे महावीराचार्य का सर्वश्रेष्ठ योगदान कहा जाता है।
8. महावीराचार्य ने गुणोत्तर श्रेणी का गहराई से विचार किया और गुणोत्तर श्रेणी के nवाँ पद ज्ञात करने के लिए सूत्र दिया है तथा nवाँ पदों का योग ज्ञात करने के लिए भी सूत्र दिया है।
9. छिन्नक (Frustum) जैसे ठोसों के आयतन ज्ञात करने का सामान्य सूत्र दिया है। भारतीय गणित के इतिहास में महावीराचार्य का अत्यंत विशिष्ट स्थान है। इनके ग्रन्थ गणित सार संग्रह की एक झलक इनके कार्य के महत्व का चित्र हमारे मानस पटल पर अंकित करती हैं।