।। नॉर्थ कोरिया (हाइड्रोजन बम) - सामुहिक विनाश या नव सृजन।।
सृष्टि के सृजन के लिए शस्त्र तथा शास्त्र दोनों की आवश्यकता है जहाँ एक तरफ शस्त्र के बिना शास्त्र असुरक्षित हो जाता है तक्षशिला विश्वविद्यालय का विनाश जिसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है वहीं शास्त्र के बिना शस्त्र असंयमित हो जाता है, प्राचीन काल से लेकर अब तक धर्मग्रंथों तथा इतिहास में अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। बंदर के हाथ में तलवार तथा कुपात्र के पास हथियार सदैव ही मानव तथा मानवता के लिए विनाशकारी साबित हुआ है। महाभारत युद्ध के आखिरी चरण में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा के द्वारा सामुहिक विनाश के हथियार ब्रम्हास्त्र के मुर्खतापूर्ण प्रयोग के विनाश को दुनिया ने सिर्फ सुना है तथा धर्मग्रंथों के माध्यम से इसके कुप्रभाव को समझने का प्रयत्न किया गया है।
आधुनिक युग में 6 तथा 9 अगस्त 1945 को अमेरिका द्वारा जापान के ऊपर परमाणु बम के हमले में मानव तथा मानवता का जो संहार हुआ उसे तो दुनिया ने प्रत्यक्ष देखा है तथा उसके दर्द को अनुभव किया है। परन्तु इस विनाश का दुसरा पक्ष और भी सुन्दर तथा मानवता के लिए उपयोगी साबित हुआ। जापान पहले से ज्यादा निर्माणकारी तथा प्रकृति-प्रेमी हो गया साथ में जापानियों में पहले से ज्यादा राष्ट्रीयता की भावना आ गयी, परन्तु इसका अर्थ यह कतई नहीं समझा जा सकता है कि किसी भी देश को अन्य देशों पर इस तरह के आक्रमण की छूट मिल जाती है, अन्य देशों के सभ्यता तथा संस्कृति को नष्ट करने की छूट मिल जाती है जापान ने तरक्की की यह जापान की महानता है परन्तु जो अमेरिका ने किया उसके लिए अमेरिका कभी भी दोषमुक्त नहीं हो सकता।
वर्तमान समय में नॉर्थ कोरिया के पास हाइड्रोजन बम तथा पाकिस्तान के पास परमाणु बम का होना वाकई शांतिप्रिय राष्ट्रों के चिंता का विषय है। एक तरफ पाकिस्तान तथा अन्य देशों में कट्टरपंथी आतंकियों के बढ़ते प्रभाव के बीच परमाणु बम का होना तो वहीं दुसरी ओर नॉर्थ कोरिया के पास हाइड्रोजन बम जैसे सामुहिक विनाश के हथियार का होना जितना भयावह नहीं उससे भी ज्यादा भयावह यह है कि एक तरफ कट्टरपंथी आतंकवादियों का मकसद पुरी दुनिया में हिंसा फैलाना तो वहां दुसरी ओर नॉर्थ कोरिया का शासक का लक्ष्य ही कुछ देशों का विनाश है। इस तरह की ओछी मानसिकता चाहे पाकिस्तान की हो, नॉर्थ कोरिया की हो या किसी अन्य देशों की हो सदैव ही सृष्टि के लिए विनाशकारी सिद्ध हुई है।
अतः यह आवश्यक है कि दुनिया के सभी शांतिप्रिय तथा प्रगतिशील देश शस्त्र तथा शास्त्र के बीच संतुलन की आवश्यकता को समझे एवं सृष्टि तथा संस्कृति की रक्षा के लिए भावी विनाश के उपक्रम को संयमित करे जो कि संपूर्ण मानवता को निगल लेने को आतुर है।
भारत के लिए अब वक्त आ गया है दुनिया को यह समझाने का कि सामुहिक विनाश के हथियार पर आधारित विकास वास्तविक अर्थ सामुहिक विनाश को आमंत्रण है।
सधन्यवाद,
अनिल ठाकुर।