।। हिंदी - वैज्ञानिक भाषा।।
संस्कृत तथा हिंदी समान लिपि में लिखे जाने के कारण दोनों की वैज्ञानिकता अद्भुत है इस भाषा के सभी वर्ण अपनी विशेषता के कारण शोध का विषय है जो अपने आसमान सी विशालता तथा महासागर सी गहराई है
इस भाषा सभी वर्ण-वर्ग के उच्चारण स्थान तथा स्वर के हर्स्व तथा दिर्घता से युक्त शब्द के भाव परिवर्तित होते रहते हैं —
क - वर्ग
क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय
ध्वनि
कंठ से निकलती है।
एक बार बोल कर देखिये |
च - वर्ग
च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |
ट - वर्ग
ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।
एक बार बोल कर देखिये |
त - वर्ग
त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |
प - वर्ग
प, फ, ब, भ, म,- ओष्ठ्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है।
एक बार बोल कर देखिये ।
इसके अलावा स्वर में हर्स्व तथा दीर्घ होना -
हर्स्व स्वर —
अ, इ, उ, ए, ओ
दीर्घ स्वर —
आ, ई, ऊ, ऐ, औ
*क,ख,ग क्या कहता है जरा गौर करें....
क - क्लेश मत करो
ख- खराब मत करो
ग- गर्व ना करो
घ- घमण्ड मत करो
च- चिँता मत करो
छ- छल-कपट मत करो
ज- जवाबदारी निभाओ
झ- झूठ मत बोलो
ट- टिप्पणी मत करो
ठ- ठगो मत
ड- डरपोक मत बनो
ढ- ढोंग ना करो
त- तैश मे मत रहो
थ- थको मत
द- दिलदार बनो
ध- धोखा मत करो
न- नम्र बनो
प- पाप मत करो
फ- फालतू काम मत करो
ब- बिगाङ मत करो
भ- भावुक बनो
म- मधुर बनो
य- यशश्वी बनो
र- रोओ मत
ल- लोभ मत करो
व- वैर मत करो
श- शत्रुता मत करो
ष- षटकोण की तरह स्थिर रहो
स- सच बोलो
ह- हँसमुख रहो
क्ष- क्षमा करो
त्र- त्रास मत करो
ज्ञ- ज्ञानी बनो !!
हम अपनी भाषा पर गर्व करते हैं क्योंकि इतनी वैज्ञानिकता दुनिया की किसी भाषा मे नही है
।।सधन्यवाद।।